भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने राष्ट्रपति संदर्भ सुनवाई के अंतिम दिन अदालत के दृढ़ संकल्प को व्यक्त करते हुए कहा कि यदि कोई संवैधानिक प्राधिकारी अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रहता है, तो सर्वोच्च न्यायालय “निष्क्रिय और शक्तिहीन” नहीं बैठेगा, चाहे वह कितना भी उच्च पद पर क्यों न हो। इस सुनवाई ने महत्वपूर्ण कानूनों को मंजूरी देने में देरी को लेकर विपक्ष शासित राज्यों और उनके राज्यपालों के बीच मतभेद को स्पष्ट रूप से उजागर कर दिया है।
मुख्य न्यायाधीश गवई ने गुरुवार (11 सितंबर, 2025) को सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता द्वारा प्रतिनिधित्व की गई केंद्र सरकार से पूछा, “कोई प्राधिकारी चाहे कितना भी उच्च पद पर क्यों न हो, वह कानून से ऊपर नहीं है… मैं शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत में दृढ़ विश्वास रखता हूँ। मेरा मानना है कि न्यायिक सक्रियता न्यायिक आतंकवाद में नहीं बदलनी चाहिए। लेकिन साथ ही, यदि लोकतंत्र का एक अंग अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रहता है, तो क्या न्यायालय, जो संविधान का संरक्षक है, शक्तिहीन और निष्क्रिय बैठने के लिए मजबूर हो जाएगा?”