अमेरिकी अख़बार वॉशिंगटन पोस्ट ने अपनी एक इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट में दावा किया है कि भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) ने सरकारी अधिकारियों के प्रस्ताव के तहत अदानी समूह की कंपनियों में लगभग 3.9 अरब डॉलर का निवेश किया.
रिपोर्ट में आंतरिक दस्तावेज़ों के हवाले से यह दावा किया गया है कि इसके लिए सरकारी दबाव में एक योजना बनाई गई और उसे पास किया गया.
विपक्षी कांग्रेस ने इसे सार्वजनिक पैसों का जबरन दुरुपयोग बताया है और इस मामले की जांच संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) और लोक लेखा समिति (पीएसी) से कराने की मांग की है.
वहीं मामला चर्चा में आने के बाद एलआईसी ने एक बयान जारी कर रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों को निराधार और झूठा बताया है.
कंपनी का कहना है कि उसके फ़ैसले न तो बाहरी फ़ैक्टर्स से प्रभावित होते हैं और न ही उनमें किसी और की कोई भूमिका होती है.
वहीं अदानी ग्रुप ने अख़बार से इस तरह के निवेश को लेकर किसी सरकारी योजना का हिस्सा होने से इनकार किया है.
अदानी समूह का कहना है कि एलआईसी का कंपनी के प्रति पक्षपातीपूर्ण रवैया अपनाने का दावा भ्रामक है.
अंग्रेज़ी अख़बार का कहना है कि इस रिपोर्ट पर अब तक नीति आयोग की तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
अदानी समूह की कंपनियों के मालिक गौतम अदानी दुनिया के दूसरे सबसे धनी व्यक्ति रह चुके हैं और उनकी संपत्ति लगभग 90 अरब डॉलर मूल्य की है.
उनकी कंपनी पर पहले भी धोखाधड़ी के आरोप लगाए गए हैं. अमेरिका में उनकी कंपनियों पर जांच भी चल रही है.
वॉशिंगटन पोस्ट ने क्या दावा किया?

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शनिवार सवेरे वॉशिंगटन पोस्ट में भारतीय कारोबारी गौतम अदानी को लेकर एक रिपोर्ट छपी जिसमें दावा किया गया कि कंपनी पर कर्ज़ का बोझ बढ़ रहा था और कई अमेरिकी और यूरोपीय बैंक उसे पैसा देने में हिचकिचा रहे थे.
ऐसे वक़्त में भारत सरकार ने उनकी मदद के लिए एक योजना बनाई.
अख़बार ने दावा किया कि आंतरिक दस्तावेज़ों के अनुसार भारतीय अधिकारियों ने एक योजना बनाकर इसी साल मई में एक प्रस्ताव पेश किया जिसमें एलआईसी के अदानी समूह में लगभग 3.9 अरब डॉलर निवेश को लेकर बात की गई थी.
सरकारी स्वामित्व वाली एलआईसी को एक प्रतिष्ठित कंपनी के रूप में देखा जाता है जो ग़रीबों और ग्रामीण इलाक़ों में परिवारों की बीमा संबंधी और वित्तीय ज़रूरतों को पूरा करती है.
अख़बार में आगे विस्तार से लिखा गया है कि ये योजना उसी महीने आई जिस महीने अदानी पोर्ट्स कंपनी को मौजूदा क़र्ज़ को रीफ़ाइनेंस करने के लिए बॉन्ड जारी कर लगभग 58.5 करोड़ डॉलर जुटाने थे.
वॉशिंगटन पोस्ट के अनुसार 30 मई को अदानी ग्रुप ने बताया कि इस पूरे बॉन्ड को एक ही निवेशक, एलआईसी ने पूरा कर दिया है.
अख़बार के मुताबिक़, ये सरकारी अधिकारियों की एक बड़ी योजना का एक छोटा-सा हिस्सा था और ये सरकार में अदानी के प्रभाव का उदाहरण है.
अख़बार का कहना है कि उसकी रिपोर्ट एलआईसी और फ़ाइनैंशियल सर्विसेस विभाग (डीएफ़एस) से मिले दस्तावेज़ों को आधार बनाकर लिखी गई है. डीएफ़एस, वित्त मंत्रालय के मातहत है.
अख़बार लिखता है कि उसने इन एजेंसी से जुड़े कई मौजूदा अधिकारियों और पूर्व अधिकारियों से बात की, साथ ही अदानी ग्रुप के वित्तीय लेनदेन के बारे में जानकारी रखने वाले तीन बैंकरों से बात की. इन सभी ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर अख़बार को इंटरव्यू दिया था.
अख़बार दावा करता है कि ये योजना डीएफ़एस के अधिकारियों ने एलआईसी और नीति आयोग के साथ मिलकर बनाई थी. नीति आयोग भारत सरकार फ़ंडेड थिंक टैंक है जिसे योजना आयोग के स्थान पर बनाया गया है.
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दस्तावेज़ों से पता चलता है कि वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने सलाह दी थी कि एलआईसी अदानी ग्रुप के जारी किए 3.5 अरब डॉलर मूल्य के कॉर्पोरेट बॉन्ड ख़रीदे और लगभग 50.7 करोड़ डॉलर का इस्तेमाल इसकी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए करे.
अदानी ग्रुप ने क्या कहा?
वॉशिंगटन पोस्ट ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि इस मामले में उन्होंने अदानी ग्रुप की प्रतिक्रिया जानने के लिए उनसे संपर्क किया.
अदानी ग्रुप ने साफ़तौर पर एलआईसी के फंड के निवेश को लेकर किसी कथित सरकारी योजना में शामिल होने से इनकार किया है.
कंपनी ने कहा है, “एलआईसी कई कॉर्पोरेट समूहों में निवेश करती है और अदानी को फेवर करने के दावे भ्रामक हैं. इसके अलावा एलआईसी ने हमारे पोर्टफोलियो में अपने निवेश से रिटर्न कमाया है.”
कंपनी ने ये भी कहा कि “अनुचित राजनीतिक पक्षपात के दावे निराधार हैं. पीएम मोदी के राष्ट्रीय नेता बनने से पहले कंपनी विकास करती रही है.”
एलआईसी ने क्या कहा?
अपने एक पन्ने के बयान में एलआईसी ने लिखा, “एलआईसी ने कभी ऐसा कोई भी दस्तावेज़ या योजना तैयार नहीं की है, जो एलआईसी द्वारा अदानी समूह की कंपनियों में निवेश करने का रोडमैप तैयार करता हो. निवेश संबंधी सभी फ़ैसले विस्तृत जांच-पड़ताल के बाद, बोर्ड की नीतियों के अनुसार स्वतंत्र रूप से लिए जाते हैं. इन फ़ैसलों में वित्त विभाग या किसी और समूह की कोई भूमिका नहीं होती.”
एलआईसी ने आगे लिखा कि “लेख में दिए गए कथित बयान से ऐसा लगता है, मानो इसका इरादा एलआईसी की फ़ैसले लेने की सुव्यवस्थित प्रक्रिया को प्रभावित करना, उसकी साख और छवि, साथ ही भारत के मज़बूत फ़ाइनैंशियल सेक्टर की नींव को बदनाम करना है.”
विपक्ष हुआ हमलावर
कांग्रेस ने इस मुद्दे पर एक के बाद एक कई ट्वीट किए हैं. पार्टी का कहना है कि “अब वॉशिंगटन पोस्ट की ख़बर में भी ये बात सामने आई है कि जब अमेरिका में अदानी पर घूसखोरी के मामले में केस हुआ तो दुनियाभर के बैंकों ने क़र्ज़ देने से मना कर दिया. तब मोदी सरकार ने एलआईसी पर दबाव बनाया और आदेश दिया कि वो अदानी की कंपनियों में 3.9 अरब डॉलर का निवेश करे.”
पार्टी ने लिखा है, “एलआईसी से यह निवेश जबरन करवाया गया, जबकि एलआईसी पहले ही अदानी के शेयरों में निवेश कर अरबों का नुक़सान झेल चुका था.”
पार्टी ने इस मामले की जांच जेपीसी से कराने की मांग की है और कहा है कि पहले कदम के तौर पर संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) को यह जांच पूरी तरह करनी चाहिए.
कांग्रेस नेता और पार्टी के संचार प्रभारी जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पर एक बयान पोस्ट किया जिसमें लिखा गया है कि “ये सवाल उठता है कि वित्त मंत्रालय और नीति आयोग के अधिकारियों ने किसके दबाव में ये तय किया कि उनका काम गंभीर आपराधिक आरोपों के कारण वित्तीय संकट से जूझ रही एक निजी कंपनी को बचाना है?”
उन्होंने इसे भारत के लोगों का नुक़सान बताया और सवाल किया, “उन्हें सार्वजनिक तौर पर सूचीबद्ध एलआईसी को निवेश करने के निर्देश किसने दिया?”
वहीं तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा ने वॉशिगटन पोस्ट की इस ख़बर को शेयर करते हुए लिखा, “मोदी सरकार लगातार गौतम अदानी को फंड देती रहती है और भारत की जनता को उसे बेलआउट करना पड़ता है. वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट ने अपने सबसे अच्छे दोस्त, अपने क़रीबी अरबपति के लिए 30 हज़ार करोड़ के एलआईसी बेलआउट पर रिपोर्ट की है.”
जानी-मानी पत्रकार और तृणमूल कांग्रेस नेता सागरिका घोष में इस पर टिप्पणी करते हुए सवाल किया, “एलआईसी में लाखों मेहनती भारतीयों का पैसा है. क्या कोई उचित जाँच-पड़ताल की गई या जनता का पैसा सिर्फ़ मोदी के दोस्तों के लिए है?”
अदानी ग्रुप पर पहले भी लगते रहे हैं आरोप
बीते साल अमेरिका की सरकारी संस्थाओं– डिपार्टमेंट ऑफ़ जस्टिस और यूएस सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज कमिशन (एसईसी) ने उन पर और उनके कुछ साथियों पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया था.
आरोप था कि गौतम अदानी और उनके सहयोगियों ने भारत में अपनी रिन्युबल एनर्जी कंपनी के लिए 25 करोड़ डॉलर यानी तकरीबन दो हज़ार करोड़ रुपये से अधिक की रिश्वत दी और अमेरिका में पूंजी जुटाने के वक़्त निवेशकों से ये जानकारी छिपाई.
इसके बाद कीनिया की सरकार ने अदानी समूह के साथ हुए दो समझौतों को रद्द करने का फ़ैसला किया. इस फ़ैसलों का असर कंपनी के शेयरों और उसकी साख पर पड़ा.
इससे पहले 24 जनवरी 2023 में हिंडनबर्ग ने अदानी ग्रुप के ख़िलाफ़ रिपोर्ट जारी कर कहा था कि “इसके मालिक गौतम अदानी ने 2020 से ही अपनी सात लिस्टेड कंपनियों के शेयरों में हेर-फेर के ज़रिये 100 अरब डॉलर कमाए.”
हिंडनबर्ग ने गौतम अदानी के भाई विनोद अदानी पर भी गंभीर आरोप लगाए गए थे और कहा था कि वो 37 शैल कंपनियां चलाते हैं, जिनका इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग में हुआ है.
इन आरोपों को अदानी ग्रुप ने निराधार बताया था.
बाद में भारत की बाज़ार नियामक संस्था सेबी ने हिंडनबर्ग को कारण बताओ नोटिस जारी किया था और कहा था कि हिंडनबर्ग ने रिसर्च एनालिस्ट के लिए तय नियमों का उल्लंघन किया है.

