‘डिजिटल पहुंच का अधिकार जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का एक सहज घटक बनकर उभरता है, जिससे राज्य को न केवल विशेषाधिकार प्राप्त लोगों, बल्कि हाशिए पर पड़े लोगों और ऐतिहासिक रूप से बहिष्कृत लोगों की सेवा करने के लिए समावेशी डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र को सक्रिय रूप से डिजाइन और कार्यान्वित करने की आवश्यकता होती है।’
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (30 अप्रैल, 2025) को अपने फैसले में कहा कि ई-गवर्नेंस और कल्याणकारी वितरण प्रणालियों तक समावेशी और सार्थक डिजिटल पहुंच जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हिस्सा है।
जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि राज्य का दायित्व है कि वह समाज के हाशिए पर पड़े, वंचित, कमजोर, विकलांग और ऐतिहासिक रूप से बहिष्कृत वर्गों को एक समावेशी डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करे।