भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने 9 सितंबर, 2025 को पिछली सुनवाई में कहा था कि राज्यपालों को राज्य सरकारों के लिए “असली मार्गदर्शक और दार्शनिक” की तरह काम करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने बुधवार (10 सितंबर, 2025) को राष्ट्रपति के रेफरेंस पर सुनवाई जारी रखी। यह रेफरेंस इस बात से जुड़ा है कि क्या राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई के लिए राष्ट्रपति और राज्य के राज्यपालों पर समय-सीमा लगाई जा सकती है। तेलंगाना की ओर से वरिष्ठ वकील निरंजन रेड्डी ने कहा कि संविधान 75 साल पहले बनाया गया था, जब राज्यों में अलग-अलग सोचने की प्रवृत्ति थी। अब ऐसा नहीं है, इसलिए राज्यपाल को विवेकाधिकार देकर राज्यों की शक्तियों को कम करना उचित नहीं है। DMK की ओर से वरिष्ठ वकील पी. विल्सन ने कहा कि विधेयक राजनीतिक इच्छाशक्ति है और राज्यपाल संवैधानिक अदालत की तरह काम नहीं कर सकता और न ही वह किसी विधेयक की संवैधानिकता पर फैसला कर सकता है। मेघालय के एडवोकेट जनरल अमित कुमार ने दलील दी कि अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास केवल एक विकल्प है – विधेयक को मंजूरी देना। आंध्र प्रदेश ने कहा कि वह केंद्र की दलील का समर्थन करता है, लेकिन एक मुद्दे पर उसका मत अलग है – राज्यों को अनुच्छेद 32 के तहत किसी भी मुद्दे पर रिट याचिका दायर करने का अधिकार नहीं है।