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    जीएसटी 2.0: आर्थिक ज़रूरत या पीएम मोदी का सियासी दांव

    Jodhpur HeraldBy Jodhpur HeraldSeptember 23, 2025

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को राष्ट्र के नाम संदेश में 22 सितंबर से लागू हो रही जीएसटी की नई दरों को ‘अगली पीढ़ी के सुधार’ बताया है.

    उन्होंने कहा कि सुधारों से आम जनता और व्यापारियों को फायदा होगा. पीएम मोदी ने कहा कि नए जीएसटी दरों के लागू होने से रोज़मर्रा की वस्तुएँ और खाने-पीने की चीज़ें सस्ती होंगी और “गरीब, मध्यम वर्ग, युवा, किसान, महिलाएं और व्यापारी” इससे सीधे लाभान्वित होंगे.

    इस संबोधन में पीएम मोदी ने पुराने टैक्स जंजाल की तुलना करते हुए बताया कि “पहले बेंगलुरु से हैदराबाद सामान भेजना यूरोप से भेजने जितना कठिन था… अब जीएसटी दरों में बदलाव से व्यापार आसान होगा और इनकम टैक्स व जीएसटी में छूट जोड़कर देशवासियों को 2.5 लाख करोड़ रुपये की बचत का अवसर मिलेगा…”

    उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि विकसित भारत के लक्ष्य को हासिल करने के लिए एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम) और देश में बनी चीज़ों को प्राथमिकता देना ज़रूरी है.

    हालांकि, विशेषज्ञों के बीच जीएसटी 2.0 को लेकर मतभेद हैं, सवाल यह है कि इन बदलावों से आम आदमी को कितना फ़ायदा होगा.

    क्या ये सुधार बहुत देर से किए गए हैं, और क्या इनका समय भारत की आर्थिक ज़रूरत के हिसाब से था या इसके पीछे राजनीतिक लक्ष्य हैं?

    साथ ही, यह भी देखा जा रहा है कि इन सुधारों का प्रभाव लघु और घरेलू उद्योगों तक कैसे पहुंचेगा.

    विशेषज्ञों का मानना है कि नए जीएसटी स्लैब और दरों से आम आदमी को सीधे लाभ होगा.

    वित्तीय विशेषज्ञ अश्विनी राणा कहते हैं, “खाने-पीने की मूलभूत वस्तुओं, जैसे दूध और मक्खन, और कारों पर टैक्स दरें कम की गई हैं, जिससे आम आदमी की बचत बढ़ेगी. उदाहरण के लिए, इंश्योरेंस प्रीमियम पर भी 18 प्रतिशत टैक्स खत्म हुआ है, जिससे 50 हज़ार रुपये की हेल्थ पॉलिसी पर सालाना करीब 9 हज़ार रुपये की बचत होगी.”

    “इसके अलावा, गाड़ियों की कीमतें भी कम हुई हैं. ये बचत सीधे ग्राहक की परचेज़िंग पावर बढ़ाएगी और बाज़ार में टैक्स से बचा यही पैसा मांग और उत्पादन को बढ़ावा देगा.”

    हालांकि, वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक शरद गुप्ता ने चेताया कि इस बदलाव का व्यापक असर होने में अभी समय लगेगा.

    “शुरुआती रुझानों में यह दिख रहा है कि बीमा कंपनियां इस बदलाव से ख़ुश नहीं हैं और उनका कहना काफ़ी हद तक सही है.”

    “बीमा कंपनियों को तनख़्वाह, ऑफ़िस के खर्चों में कोई जीएसटी राहत नहीं मिली है लेकिन जो उनकी इनकम थी, यानी कि बीमा का प्रीमियम उसमें अब उन्हें जीएसटी नहीं मिलेगा. कंपनियां ये दावा कर रही हैं कि उनकी आय कम हो गई है और खर्चे जस के तस हैं.”

    “ऐसे में वो भी जीएसटी 2.0 से पैदा होने वाले इस आय की कमी को किसी ना किसी तरह पूरा करेंगी या फिर बीमा धारकों को मिलने वाली सहूलियत में कटौती करेंगी. ऐसे में आम आदमी के लिए यह नुकसानदेह होगा.”

    ‘जीएसटी 2.0 का फ़ोकस राजनीतिक लक्ष्यों को साधना’

    कई विशेषज्ञ यह भी कह रहे हैं कि जीएसटी में फैली अनियमितताओं में सुधार बहुत देर से आया. उनका कहना है कि जीएसटी में हुआ सुधार एक आवश्यक क़दम था, लेकिन इसे उठाने में बीजेपी सरकार ने बहुत देर की है.

    विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि इस सुधार की घोषणा का समय आगामी चुनावों (जैसे बिहार, असम, उत्तर प्रदेश) के मद्देनज़र मध्यवर्ग में दिख रही बीजेपी की नीतियों के प्रति ऊब को दूर करने के लिए चुना गया प्रतीत होता है.

    शरद गुप्ता भी बीजेपी सरकार के मंसूबों पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, “प्रधानमंत्री इसे ऐसे पेश कर रहे हैं मानो पिछली सरकार ने ये टैक्स लगाए थे और बीजेपी सरकार ने आज इनसे आम आदमी को मुक्ति दिला दी हो. जबकि वास्तविकता यह है कि साल 2017 में जीएसटी के ये स्लैब वर्तमान मोदी सरकार ने ही लागू किए थे और अब इनमें बदलाव काफ़ी देर से किए गए हैं.”

    “विपक्ष भी इस बात को उजागर करने में विफल रहा कि ये टैक्स बीजेपी सरकार ने लगाए थे और अब उनमें रियायत देकर वाहवाही लूटना चाहते हैं.”

    राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई कहते हैं, “भाजपा सरकार के जीएसटी में उठाए गए क़दम को हम स्वीकार करते हैं और सरकार के साथ खड़े भी हैं, लेकिन इसके समय को लेकर सवाल उठते हैं.”

    “पिछले चुनावों और मौजूदा हालात को देख कर यह स्पष्ट है कि देश का मध्यम वर्ग जिन्होंने बहुत विश्वास और विकास के दावों पर भाजपा को वोट दिया है, वो अब इनकी नीतियों और नैरेटिव से ऊब चुका है.”

    “ऑपरेशन सिंदूर ने देश में वह माहौल नहीं बनाया जो बालाकोट स्ट्राइक ने बनाया था. साथ ही, वोट चोरी के मुद्दे को भी भाजपा बहुत अच्छे से हैंडल नहीं कर पायी है. इसलिए भी जीएसटी में हुए बदलाव और उन्हें लागू करने की टाइमलाइन आर्थिक राहत से ज़्यादा राजनीतिक लक्ष्यों को साधने की कोशिश समझ आती है.”

    शरद गुप्ता ने भी इस पर टिप्पणी करते हुए कहा, “भाजपा सरकार को अपने सबसे विश्वासपात्र वोटर वर्ग को साधे रखने का नया फ़ॉर्मूला नहीं मिल रहा है. पुरानी रणनीति काम नहीं आ रही है, इसलिए भी जीएसटी में बदलाव से भाजपा को उम्मीद है कि दूर जाते मध्यम वर्गीय वोटर दोबारा उनके साथ नज़दीक हो जाएँगे.”

    क्या सिर्फ़ टैक्स में छूट से मजबूत हो पाएगा लघु उद्योग?

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया.

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि विकसित भारत के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए आत्मनिर्भर बनना आवश्यक है और इस जिम्मेदारी में एमएसएमई सेक्टर की अहम भूमिका है.

    उन्होंने कहा, “जो देश के लोगों की ज़रूरत का है, जो देश में बना सकते हैं, वो हमें देश में ही बनाना चाहिए.”

    पीएम मोदी ने यह भी बताया कि दुकानदार भाई-बहन जीएसटी बदलाव से उत्साहित हैं और इसे ग्राहकों तक पहुंचाने में जुटे हैं. उन्होंने कहा कि सरकार घरेलू उद्योगों और लघु व मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) को सशक्त बनाने के लिए लगातार उपाय कर रही है.

    वित्तीय विशेषज्ञ अश्विनी राणा ने भी इस पर सहमति जताते हुए कहा, “लघु उद्योगों को जीएसटी में मिली छूट से सीधा लाभ होगा. टैक्स का जो पैसा बचेगा वह बाज़ार में अन्य जगहों पर खर्च होगा. जैसे-जैसे मांग बढ़ेगी, उत्पादन बढ़ेगा और छोटे उद्योग सहायक इकाइयों के रूप में भी अपनी भूमिका और मजबूत करेंगे. त्योहारों के समय इन सुधारों का असर और भी दिखाई देगा… यह समग्र आर्थिक चक्र में मांग और उत्पादन को बढ़ाकर लघु उद्योगों को अप्रत्यक्ष लाभ जरूर देगा.”

    हालांकि, विशेषज्ञ शरद गुप्ता का कहना है कि केवल टैक्स में छूट से छोटे उद्योग सशक्त नहीं होंगे.

    गुप्ता कहते हैं, “आपको अमेरिका जैसे क़दम उठाने पड़ेंगे. अपने देश में बनने वाले सामान को बाज़ार में मदद करनी पड़ेगी. जैसे कि अगर हमारे यहाँ कोई सामान बन रहा है और उसकी कीमत 100 रुपए आ रही है और अगर वही सामान विदेशों से भी इंपोर्ट किया जा रहा है तो विदेशी सामान पर टैक्स बढ़ाना पड़ेगा, ताकि विदेशी कंपनियां वही सामान 50 रुपए में ना बेचें और देश के उद्योग को बाज़ार में टिके रहने में मदद मिले.”

    शरद गुप्ता आगे कहते हैं कि सरकार दूसरे देशों की तरह आयात होने वाले सामान पर टैक्स क्यों नहीं बढ़ाती है?

    उनका तर्क है, “हम अमेरिका सामान भेजें तो 50% टैक्स दें और अगर वो यहाँ भेजें तो कम टैक्स दें, ऐसे में हमारा स्वदेशी उद्योग लंबे समय तक बाज़ार में टिक नहीं पाएगा. सरकार को उन्हें सक्रिय समर्थन देना होगा, ताकि वे उत्पादन बढ़ा सकें… घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा कर सकें.”

     

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