केवल तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल ही अब तक इस योजना में शामिल नहीं हुए हैं, जिसके तहत केंद्र 2022-23 से 2026-27 के बीच देशभर के 14,500 स्कूलों को उन्नत करने का लक्ष्य रखता है.
नई दिल्ली: केंद्र की प्रमुख PM-SHRI योजना में हिस्सा लेने से शुरू में इनकार करने के तीन साल बाद, अब केरल सरकार ने केंद्र के शिक्षा मंत्रालय के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर दिए हैं — जो नई शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को अपनाकर योजना लागू करने की एक महत्वपूर्ण शर्त है. मंत्रालय ने शुक्रवार को इस समझौते को “महत्वपूर्ण मील का पत्थर” करार दिया.
केरल सरकार ने अपना रुख तब बदला जब केंद्र ने उन राज्यों के समग्र शिक्षा अभियान (SSA) फंड रोक दिए जो PM-SHRI या प्रधानमंत्री स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया योजना में शामिल नहीं हुए थे. एसएसए केंद्र का प्रमुख सर्व शिक्षा कार्यक्रम है, जो राज्यों को प्री-प्राइमरी से कक्षा 12 तक शिक्षा की पहुंच और गुणवत्ता सुधारने में मदद करता है.
मार्च में जारी एक संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र ने अब तक पश्चिम बंगाल से 1,000 करोड़ रुपये से अधिक, केरल से 859.63 करोड़ रुपये और तमिलनाडु से 2,152 करोड़ रुपये एसएसए के तहत रोके हुए हैं, क्योंकि इन तीनों राज्यों ने PM-SHRI को लागू करने के लिए MoU पर हस्ताक्षर नहीं किए थे.
हालांकि, केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल ने इसे “लागू करने के लिए ज़बरदस्ती” माना और शुरू में भाग लेने से इनकार किया, लेकिन अब केरल सरकार ने PM-SHRI अपनाया है और केवल तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल ही योजना में शामिल होना बाकी हैं.
इस विकास के बाद, केंद्र का शिक्षा मंत्रालय ने शुक्रवार को केरल सरकार के साथ MoU पर हस्ताक्षर की घोषणा की और एक्स पर एक पोस्ट में कहा, “यह केरल में स्कूल शिक्षा को बदलने में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जहां स्कूलों को आधुनिक बुनियादी ढांचे, स्मार्ट क्लासरूम, अनुभव आधारित सीखने और कौशल विकास पर जोर देने वाले उत्कृष्ट केंद्रों के रूप में विकसित किया जाएगा, जैसा कि एनईपी 2020 में बताया गया है.”
पोस्ट में यह भी कहा गया, “हम मिलकर गुणवत्तापूर्ण, समावेशी और समग्र शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जो नवाचार को प्रोत्साहित करे और छात्रों को उज्जवल भविष्य के लिए तैयार करे.”
इस रिपोर्ट में दिप्रिंट योजना और इसके कार्यान्वयन को लेकर विवाद के बारे में बता रहा है.
क्या है PM-SHRI योजना
केंद्र सरकार ने PM-SHRI योजना के तहत 2022-23 से 2026-27 के बीच देशभर के 14,500 स्कूलों को अपग्रेड करने का लक्ष्य रखा है. इस योजना के तहत इन स्कूलों को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की भावना के अनुरूप आदर्श संस्थान बनाया जाएगा. योजना पर कुल 27,360 करोड़ रुपये खर्च होंगे, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर निवेश करेंगी.
इसमें से 18,128 करोड़ रुपये केंद्र सरकार देगी, जबकि बाकी राशि राज्य सरकारें देंगी. योजना से देशभर में करीब 18 लाख छात्रों को लाभ मिलने की उम्मीद है.
अब तक 13,070 स्कूलों को अपग्रेड करने के लिए सिलेक्ट किया गया है. इस पहल का मकसद स्कूलों के बुनियादी ढांचे, शिक्षा की गुणवत्ता और समग्र विकास को बेहतर बनाना है ताकि ये स्कूल देशभर में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के मानक बन सकें.
इन स्कूलों में स्मार्ट क्लासरूम, लाइब्रेरी, साइंस लैब, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) सुविधाएं और ग्रीन कैंपस विकसित किए जाएंगे. साथ ही, डिजिटल टूल्स, व्यावसायिक शिक्षा और जीवन कौशल प्रशिक्षण के ज़रिए छात्रों को रोजगार के लिए तैयार किया जाएगा.
अन्य विशेषताओं में सभी बच्चों के लिए समान और समावेशी सीखने का माहौल, छात्रों में जिज्ञासा और सहयोग की भावना को बढ़ावा देना और स्थानीय समुदाय की भागीदारी को शिक्षा का हिस्सा बनाना शामिल है.
इसके अलावा, स्कूलों को गुणवत्ता के मानकों के आधार पर वित्तीय प्रोत्साहन भी दिया जाएगा.
कुछ राज्य PM-SHRI के खिलाफ क्यों हैं
कुछ विपक्ष शासित राज्यों ने PM-SHRI योजना का विरोध किया है, क्योंकि इसमें NEP 2020 को अपनाना ज़रूरी शर्त है.
उदाहरण के लिए, तमिलनाडु सरकार ने NEP 2020 में सुझाए गए तीन-भाषा फार्मूले को लेकर आपत्ति जताई है. मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन की सरकार का मानना है कि यह योजना हिंदी थोपने का अप्रत्यक्ष तरीका है. हालांकि, PM-SHRI योजना के तहत किसी राज्य पर कोई भाषा थोपना अनिवार्य नहीं है.
द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) सरकार को यह भी डर है कि इससे उसका मौजूदा शिक्षा मॉडल प्रभावित होगा. राज्य ने केंद्र पर वित्तीय दबाव डालकर NEP लागू करने की कोशिश और राज्यों की स्वायत्तता में दखल देने का आरोप लगाया है.
वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (LDF) के नेतृत्व वाली केरल सरकार ने भी PM-SHRI का विरोध किया था, यह कहते हुए कि NEP के ज़रिए शिक्षा की ‘भगवाकरण’ (सांप्रदायिकरण) और राजनीतिकरण की आशंका है. पश्चिम बंगाल ने भी वैचारिक मतभेदों के कारण इस योजना का विरोध किया है.
PM-SHRI की धारा 3.6, जो गैर-सरकारी परोपकारी संगठनों को स्कूल बनाने की अनुमति देती है और धारा 4.27, जिसमें “भारतीय ज्ञान” को शामिल करने की बात है — इन दोनों प्रावधानों को लेकर केरल में आपत्ति जताई गई. राज्य को आशंका थी कि इससे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके सहयोगी संगठन स्कूल खोलने और पाठ्यक्रम पर प्रभाव डालने में सक्षम हो सकते हैं.
इसके अलावा, धारा 8.4, जो निजी और परोपकारी स्कूल क्षेत्र को बढ़ावा देती है, को केरल सरकार ने सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली को कमजोर करने वाला कदम बताया.
शुरुआत में दिल्ली और पंजाब सरकारों ने भी इस योजना का विरोध किया था, लेकिन बाद में उन्होंने समग्र शिक्षा अभियान (SSA) फंड रोकने के बाद केंद्र के साथ MoU पर हस्ताक्षर कर दिए.
केरल ने केंद्र के साथ MoU पर हस्ताक्षर क्यों किए
केरल के सामान्य शिक्षा मंत्री वी. शिवनकुट्टी ने 19 अक्टूबर को घोषणा की कि एलडीएफ सरकार ने राज्य के शिक्षा क्षेत्र के लिए 1,466 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता पाने के उद्देश्य से PM-SHRI योजना को लागू करने का फैसला लिया है.
इससे पहले जून में राज्य सरकार ने कहा था कि वह इस योजना को स्वीकार नहीं करेगी और यह सुनिश्चित करने के लिए कानूनी विकल्पों पर विचार कर रही थी कि केंद्र की निधि राज्य तक पहुंचे.
लेकिन अब केरल का यह फैसला एक बड़ा नीतिगत बदलाव माना जा रहा है, जिसमें वित्तीय दबाव ने अहम भूमिका निभाई.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, शिवनकुट्टी ने कहा, “यह पैसा हमारे बच्चों पर खर्च होना चाहिए. कई खर्चे — जैसे छात्रवृत्तियां और शिक्षकों के वेतन — तभी पूरे हो सकते हैं जब यह फंड मिले. स्वास्थ्य और कृषि जैसे अन्य विभाग भी केंद्र की सहायता ले रहे हैं. केंद्र सरकार का पैसा इस देश के सभी लोगों का है, तो हम इससे दूर क्यों रहें?”
हालांकि, इस समझौते पर हस्ताक्षर करने से केरल की सत्तारूढ़ गठबंधन सरकार में शामिल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (CPI(M)) के बीच मतभेद सामने आए हैं. CPI का मानना है कि PM-SHRI योजना वास्तव में NEP 2020 को बढ़ावा देने का माध्यम है.
बुधवार को CPI के राज्य सचिव बिनॉय विश्वम ने दिप्रिंट से कहा, “हम NEP के खिलाफ रहे हैं क्योंकि यह RSS की विचारधारा को बढ़ावा देता है. PM-SHRI की संरचना ही NEP पर आधारित है, जो शिक्षा में RSS विचारधारा के क्रियान्वयन का तरीका है. राजनीतिक एकता बनाए रखना ज़रूरी है. हमारी लड़ाई वाम विचारधारा को कायम रखने की है, और हमें भरोसा है कि CPI(M) भी इसे समझेगी.”

