Close Menu
Jodhpur HeraldJodhpur Herald
    • होम
    • राष्ट्रीय
    • अंतर्राष्ट्रीय
    • ट्रेंडिंग न्यूज
    • राजनीति
    • कारोबार
    • क्राइम
    • खेल
    • मनोरंजन
    • शिक्षा/करियर
    • राजस्थान के जिले
      • अजमेर
      • अलवर
      • उदयपुर
      • कोटा
      • चित्तौड़गढ़
      • चुरु
      • जयपुर
      • जालौर
      • जैसलमेर
      • जोधपुर
      • झालावाड़
      • झुंझुनू
      • टोंक
      • डूंगरपुर
      • दौसा
      • धौलपुर
      • नागौर
      • पाली
      • प्रतापगढ़
      • बाड़मेर
      • बाराँ
      • बांसवाड़ा
      • बीकानेर
      • बूंदी
      • भरतपुर
      • भीलवाड़ा
      • राजसमंद
      • श्रीगंगानगर
      • सवाई माधोपुर
      • सिरोही
      • सीकर
      • हनुमानगढ़
    • संपादकीय
    What's Hot

    सिर्फ अनाज बढ़ाने से नहीं सुलझेगा भारत का फूड सिक्योरिटी संकट, 60 साल पुरानी FCI करे पोषण पर फोकस

    July 16, 2025

    जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करें: राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे ने पीएम मोदी से कहा

    July 16, 2025

    ममता बनर्जी ने कोलकाता में विरोध मार्च का नेतृत्व किया, भाजपा को चेतावनी दी कि अगर उसने बंगाली भाषी लोगों को ‘परेशान’ करना बंद नहीं किया तो उसे ‘गंभीर राजनीतिक प्रतिक्रिया’ का सामना करना पड़ेगा

    July 16, 2025
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Wednesday, July 16
    Facebook X (Twitter) Instagram YouTube
    Jodhpur HeraldJodhpur Herald
    • होम
    • राष्ट्रीय
    • अंतर्राष्ट्रीय
    • ट्रेंडिंग न्यूज
    • राजनीति
    • कारोबार
    • क्राइम
    • खेल
    • मनोरंजन
    • शिक्षा/करियर
    • राजस्थान के जिले
      1. अजमेर
      2. अलवर
      3. उदयपुर
      4. कोटा
      5. चित्तौड़गढ़
      6. चुरु
      7. जयपुर
      8. जालौर
      9. जैसलमेर
      10. जोधपुर
      11. झालावाड़
      12. झुंझुनू
      13. टोंक
      14. डूंगरपुर
      15. दौसा
      16. धौलपुर
      17. नागौर
      18. पाली
      19. प्रतापगढ़
      20. बाड़मेर
      21. बाराँ
      22. बांसवाड़ा
      23. बीकानेर
      24. बूंदी
      25. भरतपुर
      26. भीलवाड़ा
      27. राजसमंद
      28. श्रीगंगानगर
      29. सवाई माधोपुर
      30. सिरोही
      31. सीकर
      32. हनुमानगढ़
      Featured

      राजस्थान में बारिश ने मचाई तबाही, सड़कों पर तैरती दिखीं गाड़ियां,

      July 14, 2025
      Recent

      राजस्थान में बारिश ने मचाई तबाही, सड़कों पर तैरती दिखीं गाड़ियां,

      July 14, 2025

      जोधपुर में मानसून की बारिश से गर्मी से मिली राहत, जलभराव से आमजन की बढ़ी मुश्किलें

      July 2, 2025

      जोधपुर कलेक्ट्रेट को भी बम से उड़ाने की धमकी, कल 4 जिला कलेक्टर को मिला था ई-मेल

      May 21, 2025
    • संपादकीय
    Jodhpur HeraldJodhpur Herald

    लोकतंत्र की असली परीक्षा: भारत को पहले ‘नेक चुनाव’ चाहिए, ‘एक चुनाव’ नहीं

    Jodhpur HeraldBy Jodhpur HeraldJuly 8, 2025
    NEW DELHI, INDIA - DECEMBER 27: An outside shot of Election Commision Of India office, on December 27, 2021 in New Delhi, India. The Election Commission is expected to announce the election dates next month for Uttar Pradesh, Manipur, Uttarakhand, Goa and Punjab. (Footage by Times Network India via Getty Images)

    इसलिए, अभी देश में एक चुनाव से अधिक नेक चुनाव की ज़रूरत लगती है. बिना नेक हुए केवल एक चुनाव की व्यवस्था और भी अधिक अन्याय कर सकती है.

    अतः सब से पहले तो, चुनाव आयोग की निष्पक्षता संदेह से परे रहनी चाहिए. दूसरे, चुनाव के दौरान सत्ताधारी दल और अन्य दलों के लिए स्थिति समान रखना. यह सुनिश्चित करना कि सत्ताधारी दल राजकीय शक्ति और संसाधनों का उपयोग अपने दल के लिए न करे. तीसरे, सोच-विचार द्वारा यह उपाय भी होना चाहिए कि प्रायः नेक लोग ही संसद, विधानसभाओं में आएं. जिन में ‘कानून निर्माता’ होने की भावना और योग्यता भी हो. यह तीनों उपाय करना आवश्यक ही नहीं, संभव भी है.

    किंतु हर हाल में चुनाव प्रक्रिया में सभी उम्मीदवारों के लिए समान स्थिति रखनी अनिवार्य है. अभी यहां हर जगह सत्ताधारी दलों के उम्मीदवार, विशेषतः मंत्री पदधारियों को विशेष साधन, सुविधाएं हासिल रहती है. यह अन्य उम्मीदवारों के प्रति अन्याय है. यह बंद करने के लिए चुनाव आयोग उपाय कर सकता है.

    याद करें, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लोक सभा चुनाव पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले (1975) की आत्मा यही थी. उस फैसले में राजकीय संसाधन का उपयोग किसी उम्मीदवार के पक्ष में करना अवैध कहा गया था. अतः राजकीय संसाधनों से पार्टी प्रचार बंद होना चाहिए जो आज अनगिनत रूप में सालो भर चलता रहता है, जिस का खुला लक्ष्य है, सत्ताधारी दल द्वारा अगला चुनाव जीतना. यह इतना बढ़ चुका है कि सब कहते हैं कि अमुक सत्ताधारी दल सदैव अगले चुनाव की ही तैयारी में लगा रहता है. मगर ध्यान दें कि यह सब पूरी तरह राजकीय संसाधनों का दुरुपयोग करके ही होता है. वरना, वह असंभव होता.

    अतः इलाहाबाद हाईकोर्ट फैसले की भावना हर तरह के मंत्री पदधारी उम्मीदवार के चुनाव-प्रचार ही नहीं, मंत्रियों द्वारा तमाम पार्टी काम करते रहने पर भी लागू है. ऐसे काम जिस से सत्ताधारी पार्टी को लाभ, व दूसरों को हानि हो.

    इस प्रकार, यहां राज्य और सत्ताधारी पार्टी का घालमेल रोकना चुनाव की निष्पक्षता के लिए बुनियादी बिंदु है. मंत्री लोग राजकीय सुविधाओं, संसाधनों के बल के साथ दलीय-काम करते रहते हैं, जिससे सत्ता-विहीन दल सदैव और चुनाव के समय भी, घोर विषम स्थिति में रहते हैं. मानो, फुटबॉल मैच में एक टीम के खिलाड़ी नंगे पांव रखे जाएं, जब कि प्रतिद्वंद्वी टीम के खिलाड़ी शानदार आदिदास बूट पहने हों! भारत में चल रही चुनावी व्यवस्था ऐसी हो गई है. यह रोकी जा सकती है और रोकनी चाहिए. अन्यथा विकृतियां बढ़ती जाएंगी.

    राजनीतिक दलों की आम प्रवृत्ति को राबर्ट मिचेल्स ने ‘अल्पतंत्र का लौह नियम’ (आयरन लॉ ऑफ ओलिगार्की) कहा था कि आकार बढ़ते ही हर दल के नेतृत्व में अनैतिक व तानाशाही प्रवृत्तियां बढ़ने लगते हैं. जिसे दल के भी निचले लोग नहीं रोक सकते. अतः दलों पर विशेष अंकुश की व्यवस्था होनी चाहिए, न कि विशेषाधिकारों की!

    यही भारतीय संविधान (1950) की भावना भी थी. उसमें हर राजकीय पद पर नियुक्त (व्यक्ति) को अधिकार, उत्तरदायित्व दिया गया था – दल को नहीं. अतः राजनीतिक दल भी अन्य सामाजिक संस्थाओं, कंपनियों, आदि की तरह सामान्य हैं. संविधान ने उसे कोई स्थान नहीं दिया था. परंतु समय के साथ यहां सत्ताधारियों ने दलों को विशेष सुविधाएं दे-देकर एक असंवैधानिक, अनुचित व्यवस्था बना दी. छोटे-छोटे दलों को भी सरकारी बंगले, सस्ती ज़मीन सुविधाएं मिलती हैं. तुलना में सत्तासीन दलों की अघोषित सुविधाएं बेहिसाब होती गई. यह सब निश्चित रूप से असंवैधानिक है. साथ ही राजनीतिक दलों की ओर गलत किस्म के लोगों के आकर्षण का कारण भी.

    फिर, मंत्री लोग अपने दल के लिए जो भी काम करते हैं उन के साथ राजकीय स्टाफ, संसाधन, प्रबंध, आदि अतिरिक्त बल व प्रभाव रहता है. जबकि मंत्री पद की सुविधाएं राजकार्य के लिए है, पार्टी कार्य के लिए नहीं. अतः मंत्रियों का खुल कर पार्टी काम करना और अपने चुनाव क्षेत्र के सिवा अन्य क्षेत्रों में अपने दल के लिए प्रचार करना भी कदाचार है. इससे गैर-सत्ताधारी दलों के उम्मीदवारों के विरुद्ध विविध रूपों में सरकारी ताकत लगती है. इस प्रकार, राजकीय तंत्र के दुरुपयोग से सत्ताधारी दल अनुचित लाभ उठाते हैं. इससे स्वतंत्र उम्मीदवारों और छोटे दलों को नाहक हानि होती है.

    ध्यान रहे, सरकार सभी नागरिकों के लिए है – किसी दल हेतु नहीं. पर सत्तासीन दल के नेता दिन-रात दूसरे दलों, नेताओं के विरुद्ध भाषण देते रहते हैं. मानो, सरकार और राज्य-तंत्र केवल उन के दल के लिए है! मानो मंत्रियों का काम विपक्षी दलों को अपशब्द कहना और विपक्षी नेताओं को बदनाम करने के लिए राजकीय ताकत लगाना है. अनेक मंत्रियों के बयान और काम साफ-साफ दलीय स्वार्थसिद्धि दिखते हैं. यह सब संवैधानिक निर्देश के विपरीत है. सरकार का मतलब पार्टी, और पार्टी का मतलब सरकार बन गया है. इसे सुधारना अनिवार्य है, ऐसी विकृति यूरोपीय, अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया, जापान जैसे देशों में कतई नहीं है.

    राज्य और पार्टी का घाल-मेल कम्युनिस्ट तानाशाहियों की विशेषता रही है. पश्चिमी लोकतंत्र में कहीं ऐसा नहीं, पर भारत में वही कर डाला गया, जो संविधान को व्यवहार में तहस-नहस करके हुआ. भारतीय संविधान की तीसरी अनुसूची में मंत्री पद की शपथ इस प्रकार है: ”…मैं बिना लगाव या दुर्भावना के हर तरह के लोगों के प्रति सही काम करूंगा जो संविधान और कानून सम्मत हो.”

    अतः किसी मंत्री द्वारा किसी दल/नेता के विरुद्ध आरोप लगाना, दुर्भावना के बयान देना उस शपथ के विपरीत है, जब तक न्यायालय ने किसी नेता/दल को किसी बात का अपराधी न ठहराया हो, तब तक किसी मंत्री द्वारा उस के विरुद्ध बोलना उस संवैधानिक शपथ की खिल्ली उड़ाना है, न केवल चुनाव के समय, बल्कि जब तक कोई मंत्री पद पर है, तब तक उस पूरी अवधि में वैसे बयान भी मंत्री पद की शपथ की मर्यादा का उल्लंघन है.‌

    इसलिए, सरकार में बैठे नेताओं द्वारा खुल कर पार्टी कार्य करना, दलीय बयानबाजी बंद करना ज़रूरी है. किसी मंत्री को जो राजकीय संसाधन, स्टाफ, ऑफिस, बंगला, मीडिया कवरेज, महत्ता मिलती है वह राजकीय पद के कारण. जिन सब का उपयोग किसी दल के पक्ष, या दूसरे दल के विरुद्ध करना अनैतिक है.

    यदि कोई नेता अपने पार्टी-कार्य हेतु ज़रूरी है, तो उसे मंत्री पद से मुक्त करें. अन्यथा यही अर्थ होगा कि वह नेता अपने पार्टी-काम के लिए उतना ज़रूरी नहीं – बल्कि उस के बहाने राजकीय संसाधन, महत्ता, दबदबे का उपयोग पार्टी के लिए हो रहा है! यह साफ दुरुपयोग है. जो इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गाँधी वाले फैसले में कहा था, जबकि आज मंत्री लोग सालों भर पार्टी कार्य करते और बयान देते देखे जाते हैं.

    लेकिन, जैसे किसी कंपनी का मालिक, या उस के मैनेजिंग बोर्ड का सदस्य, यदि सरकार में मंत्री बन जाए तो वह अपनी कंपनी के फायदे के लिए दूसरी कंपनियों के विरुद्ध खुली ताकत नहीं लगा सकता, या प्रोपेगेंडा नहीं कर सकता. वही स्थिति राजनीतिक दलों के प्रति भी होनी चाहिए कि मंत्री पद से कोई नेता अपनी पार्टी के पक्ष में या दूसरी पार्टी के खिलाफ बयान नहीं दे.

    यह बातें सहज न्याय दृष्टि से भी परखनी चाहिए. राजनीतिक दलों को आय-कर में छूट, या सूचना अधिकार कानून से मुक्त रखना भी अनुचित है. संविधान ने राजनीतिक दलों का‌ नोटिस तक नहीं लिया था – उसे कोई विशेषाधिकार देना तो दूर रहा, लेकिन आज अनेक विशेषाधिकार राजनीतिक दलों के हाथ में आ गए हैं, जो धीरे-धीरे राष्ट्रीय पतन की सीढ़ी बन सकती है. जैसा कम्युनिस्ट देशों में हुआ. राज्य और पार्टी का घालमेल बड़ी भारी गड़बड़ियों का स्त्रोत है.

    इन बातों की तुलना यूरोपीय लोकतंत्रों से करके भी स्थिति समझ सकते हैं. भारत में राजनीतिक दलों, नेताओं का व्यापक दबदबा, उन्हें राजकीय संसाधनों से तरह-तरह की आजीवन सुविधाएं, आदि, पश्चिमी लोकतंत्रों में नहीं है, न हमारे संविधान निर्माताओं ने ऐसी व्यवस्था की थी. अतः यहां सत्ताधारी दलों द्वारा तरह-तरह के विशेषाधिकार झटक लेना असंवैधानिक और सामान्य न्याय के भी विरुद्ध है. साथ ही, छोटे दलों, स्वतंत्र उम्मीदवारों, आदि को विषम स्थिति में चुनाव लड़ने को मजबूर करना है.

    वह सब रोकना संभव है. यहां हर पार्टी के पदाधिकारियों का अपना पूरा तामझाम है ही. तो, पार्टी कार्य, सभा, वक्तव्य, आदि केवल पार्टी अधिकारियों के माध्यम से हो सकते हैं. सरकार के मंत्री केवल राजकीय काम करें, उसी संबंध में बोलें. तभी पार्टी और सरकार में घालमेल रुकेगा, तब संसद और विधानसभाओं में भी कार्यपालिका और व्यवस्थापिका के कामों में भेद रहेगा. जिस से सदन में गंभीरता और सहजता भी आएगी.

    राज्य कार्य और पार्टी कार्य, सरकार के पदधारियों और पार्टी के पदधारियों को अलग करना सरल भी है क्योंकि पाबंदियां सभी दलों पर लागू होगी. यह किसी खास पार्टी के हित-अहित में न होकर सब के लिए समान होगी, जिससे चुनावी मैच में समान अवसर, लेवल-प्लेयिंग फील्ड सुनिश्चित होगी. इसलिए हर कारण से देश में एक से पहले नेक चुनाव स्थापित करना अधिक आवश्यक है.‌

    Post Views: 20

    Related Posts

    सिर्फ अनाज बढ़ाने से नहीं सुलझेगा भारत का फूड सिक्योरिटी संकट, 60 साल पुरानी FCI करे पोषण पर फोकस

    July 16, 2025

    ‘वोटबंदी’ की नई साजिश, बिहार में चुनाव से पहले नागरिकता की तलाशी

    July 7, 2025

    मंजूरी, प्रदर्शन और लाल फीताशाही: गुजरात में दलितों को बौद्ध धर्म अपनाने के लिए क्या झेलना पड़ता है

    July 1, 2025

    होसबोले, धनखड़, शिवराज और हिमंत ने मोदी को BJP के संविधान में बदलाव करने की एक और वजह दी

    July 1, 2025

    भारतीय जाति जनगणना का इतिहास भारतीय राजव्यवस्था का इतिहास है

    June 19, 2025

    लोकतांत्रिक संस्थाओं और परंपराओं में योगदान के लिए जवाहरलाल नेहरू को याद करें

    May 27, 2025
    -advertisement-
    Top Posts

    पूजा स्थल अधिनियम को दो साल पहले ही सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी मिली थी। इसे दोबारा क्यों देखें?

    December 5, 202473 Views

    पाली के देसूरी नाल हादसे में तीन स्कूली बच्चियों की मौत

    December 9, 20247 Views

    सुप्रीम कोर्ट ने पूजा स्थल अधिनियम की चुनौतियों पर सुनवाई के लिए सीजेआई की अध्यक्षता में विशेष पीठ का गठन किया

    December 7, 202421 Views
    -advertisement-
    Stay In Touch
    • Facebook
    • YouTube
    • Twitter
    • Instagram
    Recent News

    सिर्फ अनाज बढ़ाने से नहीं सुलझेगा भारत का फूड सिक्योरिटी संकट, 60 साल पुरानी FCI करे पोषण पर फोकस

    July 16, 2025

    जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करें: राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे ने पीएम मोदी से कहा

    July 16, 2025

    ममता बनर्जी ने कोलकाता में विरोध मार्च का नेतृत्व किया, भाजपा को चेतावनी दी कि अगर उसने बंगाली भाषी लोगों को ‘परेशान’ करना बंद नहीं किया तो उसे ‘गंभीर राजनीतिक प्रतिक्रिया’ का सामना करना पड़ेगा

    July 16, 2025
    Most Popular

    पूजा स्थल अधिनियम को दो साल पहले ही सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी मिली थी। इसे दोबारा क्यों देखें?

    December 5, 202473 Views

    पाली के देसूरी नाल हादसे में तीन स्कूली बच्चियों की मौत

    December 9, 20247 Views

    सुप्रीम कोर्ट ने पूजा स्थल अधिनियम की चुनौतियों पर सुनवाई के लिए सीजेआई की अध्यक्षता में विशेष पीठ का गठन किया

    December 7, 202421 Views
    Contact Us

    CHIEF EDITOR
    Hanuman Mandar

    ADDRESS
    Office No. 4 Opp. Jai Hind Bal Mandir School Jalori Gate Jodhpur 342001, Rajasthan

    CONTACT NO.
    0291-2640948

    EMAIL
    jodhpurherald@gmail.com

    WEB ADDRESS
    www.jodhpurherald.com

    © 2025 www.jodhpurherald.com. Designed by www.WizInfotech.com.

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.