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    अब अमेरिका-इंग्लैंड नहीं, बिहार-गुजरात ज़्यादा — राहुल गांधी 2.0 का ज़मीन से जुड़ा दौरा तेज़

    Jodhpur HeraldBy Jodhpur HeraldJuly 22, 2025

    अपने राजनीतिक करियर के ज़्यादातर हिस्से में राहुल गांधी पर अक्सर ‘गंभीर नहीं’ या ‘अनिच्छुक नेता’ होने का ठप्पा लगता रहा है, लेकिन पिछले कुछ महीनों में उनकी छवि में बदलाव दिख रहा है.

    नई दिल्ली: लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी शुक्रवार को केरल में थ, एक दिन पहले वे असम गए थे. बुधवार को उन्होंने कुछ घंटे लखनऊ में बिताए. हफ्ते की शुरुआत में उन्होंने दिल्ली में झारखंड और बिहार के कांग्रेस नेताओं से मुलाकात की थी. पिछले हफ्ते वे पटना और भुवनेश्वर गए थे, उससे पहले राजधानी दिल्ली में गुजरात इकाई के साथ बैठक की थी.

    अपने राजनीतिक जीवन के अधिकतर हिस्से में राहुल गांधी पर यह छवि चिपकी रही कि वे गंभीर नेता नहीं हैं या राजनीति में उनकी खास रुचि नहीं है. यह छवि उनके विरोधियों ने गढ़ी थी, लेकिन खुद कांग्रेस पार्टी के कुछ नेता भी उनकी इस अस्थिर कार्यशैली से परेशान थे.

    हालांकि, पिछले कुछ महीनों में तस्वीर बदली है. राहुल गांधी का शेड्यूल लगातार व्यस्त रहा है — राज्यों के लगातार दौरे, पार्टी की फ्रंटल संगठनों के साथ बैठकें, ज़िला इकाइयों को फिर से सक्रिय करने की कोशिशें और प्रदेश कांग्रेस कमेटियों के प्रदर्शन की समीक्षा — इन सबमें वे लगातार जुटे हुए हैं.

    पिछले साल अप्रैल में दिल्ली के जवाहर भवन में एक जनसभा के दौरान राहुल गांधी ने पहली बार इस आलोचना का खुलकर जवाब दिया था. उन्होंने कहा था, “कहते हैं मैं गंभीर नहीं हूं, राजनीति में मेरी रुचि नहीं है. ज़मीन अधिग्रहण बिल, मनरेगा, नियमगिरी, भट्टा-परसौल — ये सब गंभीर नहीं हैं? जब हम जनता की बात करते हैं तो हमें गैर-गंभीर कहा जाता है. जब आपके पास माइक नहीं होता, तब आप जो भी कहते हैं, वो गैर-गंभीर माना जाता है.”

    यह दरअसल उनके राजनीतिक सफर के शुरुआती वर्षों को वैचारिक नज़रिए से समझाने की कोशिश थी — जिसमें वे खुद को सत्ता-व्यवस्था के अंदर एक “बाहरी” व्यक्ति के तौर पर पेश करते हैं.

    लेकिन वर्षों तक उन्हें जो आलोचना झेलनी पड़ी, वो वैचारिक कमी की वजह से नहीं थी, बल्कि इसलिए थी कि वे अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं के लिए उपलब्ध नहीं थे या उनसे संवाद नहीं करते थे.

    कई बार राजनीति से उनका गायब हो जाना, विदेश यात्राएं करना और केवल चुनाव के समय सक्रिय दिखना — खासकर 2014 की कांग्रेस की हार के बाद — इस छवि को और मजबूत करता गया.

    2022-23 में कन्याकुमारी से कश्मीर तक की 4,000 किलोमीटर लंबी भारत जोड़ो यात्रा ने इस रवैये से बड़ा बदलाव दिखाया. इस यात्रा ने उन्हें एक अधिक गंभीर नेता के रूप में स्थापित किया. इसके बाद 2024 की शुरुआत में उन्होंने मणिपुर से महाराष्ट्र तक भारत जोड़ो न्याय यात्रा निकाली.

    फिर भी, कई लोगों को विश्वास नहीं था कि राहुल कांग्रेस की कमजोर संगठनात्मक मशीनरी को फिर से खड़ा कर पाएंगे — खासकर जब तक वे राज्य स्तर के नेताओं से खुद जुड़ने की पहल न करें.

    कांग्रेस के एक लोकसभा सांसद ने दिप्रिंट से कहा, “चाहे भारत जोड़ो यात्रा हो या भट्टा-परसौल का आंदोलन, इन अभियानों ने राहुल गांधी की एक वैचारिक और प्रतिबद्ध नेता की छवि बनाई, जिनका दिल आम लोगों के लिए धड़कता है, लेकिन वे फिर भी संगठन से जुड़े मामलों में रुचि नहीं रखने वाले और बाहरी नेताओं के लिए दूरदराज़ रहने वाले माने जाते थे. अब इसमें थोड़ा बदलाव ज़रूर आया है.”

    राहुल गांधी की इस साल की शुरुआत से अब तक की गतिविधियों पर नज़र डालें, तो साफ दिखता है कि वे कांग्रेस के संगठनात्मक कामकाज में पहले से ज़्यादा सक्रिय हो गए हैं.

    जब राहुल गांधी के बदले हुए अंदाज़ के बारे में पूछा गया, तो कांग्रेस के संगठन महासचिव के. सी. वेणुगोपाल ने दिप्रिंट को बताया कि अब पार्टी नेतृत्व के राज्य दौरों की योजना पहले से अलग तरीके से बनाई जाती है.

    उन्होंने कहा, “पहले हम किसी राज्य में जाते थे, रैली करते थे और वापस लौट आते थे. अब वह तरीका बदल गया है. अब राहुल गांधी जब भी किसी राज्य में जाते हैं, वहां के वरिष्ठ नेताओं, सांसदों, विधायकों से अलग-अलग मुलाकात की जाती है. फिर एक सार्वजनिक कार्यक्रम होता है और फिर दिल्ली लौटते हैं. यही मॉडल कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के लिए भी अपनाया जा रहा है. हम अब तक 9-10 राज्यों में जा चुके हैं, बाकी राज्यों का दौरा भी जल्द होगा.”

     

    जनवरी में राहुल गांधी ने ज़्यादातर समय दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार में लगाया. फरवरी में वे बिहार गए — इस साल में अब तक बिहार के उनके छह दौरे हो चुके हैं.

    फरवरी में ही उन्होंने अपनी लोकसभा सीट रायबरेली में दो दिन बिताए और सात सार्वजनिक कार्यक्रमों में हिस्सा लिया. मार्च में वे अहमदाबाद पहुंचे, जहां उन्होंने दो दिन का दौरा किया. यहां की शुरुआत उन्होंने गुजरात कांग्रेस की पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी के साथ बैठक से की — इस तरह की बैठकें वे अब लगभग हर राज्य में कर रहे हैं.

    गुजरात में ही कांग्रेस ने एक महत्वाकांक्षी योजना शुरू की है — ज़िला इकाइयों को फिर से मजबूत करने की. मकसद है पार्टी को फिर से राजनीतिक रूप से मजबूत करने के लिए ज़िला स्तर को केंद्र में लाना.

    वेणुगोपाल ने कहा, “अगर हम ज़िला इकाइयों के पुनर्गठन की इस योजना को सफल बना पाते हैं, तो पार्टी की 70 प्रतिशत समस्याएं अपने आप सुलझ जाएंगी.”

    पहले ज़िला अध्यक्षों की नियुक्ति अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) राज्य प्रभारियों और प्रदेश अध्यक्षों की सुझाई गई नामों की सूची देखकर करती थी.

    वेणुगोपाल ने कहा, “अब हर ज़िले में AICC और PCC (प्रदेश कांग्रेस कमेटी) के पर्यवेक्षक 5,000 से 6,000 लोगों से बात करके नामों को शॉर्टलिस्ट कर रहे हैं. अंतिम फैसला AICC ही लेगी. गुजरात में नए ज़िला अध्यक्षों की घोषणा हो चुकी है. मध्य प्रदेश और हरियाणा की सूची भी इसी महीने जारी कर दी जाएगी.”

    उन्होंने कहा कि राहुल गांधी राज्य नेतृत्व से मुलाकात कर सिर्फ संगठन को जोड़ने का काम नहीं कर रहे, बल्कि संगठनात्मक बदलाव पर उनकी राय और फीडबैक भी ले रहे हैं.

    अप्रैल में राहुल गांधी ने बिहार, गुजरात (दूसरी बार), जम्मू-कश्मीर, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश का दौरा किया. 7 अप्रैल को उन्होंने बिहार में ‘संविधान सुरक्षा सम्मेलन’ जैसे कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के साथ-साथ प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं और ज़िला अध्यक्षों से भी मुलाकात की.

    गुजरात में एक बार फिर दो दिन के दौरे पर गए राहुल गांधी ने ज़िला इकाइयों के पुनर्गठन की योजना की औपचारिक शुरुआत की और इस काम के लिए नियुक्त पर्यवेक्षकों के ओरिएंटेशन कार्यक्रम को भी संबोधित किया.

    उसी महीने बाद में, वे जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग गए, जहां उन्होंने पहलगाम आतंकी हमले में घायल लोगों से मुलाकात की.

    26 अप्रैल को राहुल गांधी ने तेलंगाना में कांग्रेस सरकार द्वारा आयोजित ‘भारत समिट’ में हिस्सा लिया. तीन दिन बाद वे फिर से रायबरेली पहुंचे और कई जनसंपर्क कार्यक्रमों में भाग लिया. साथ ही पार्टी के बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं के साथ बैठक भी की.

    15 मई को वे पटना लौटे — इस बार उन्होंने एक विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया और वंचित समुदायों के सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स के साथ फिल्म ‘फुले’ देखी. ये दोनों गतिविधियां उनके सामाजिक न्याय के एजेंडे से जुड़ी थीं. पांच दिन बाद वे कर्नाटक के विजयनगर ज़िले में एक जनसभा को संबोधित करने पहुंचे.

    24 मई को राहुल गांधी जम्मू-कश्मीर के पुंछ इलाके में गए, जो ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तानी गोलाबारी से प्रभावित हुआ था.

    दिल्ली लौटने के बाद उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय का दौरा किया और वहां NSUI (नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया) इकाई से मुलाकात की. 30 मई को उन्होंने दिल्ली में असम कांग्रेस के नए नेतृत्व से मुलाकात की — यह बैठक लोकसभा में पार्टी के डिप्टी लीडर गौरव गोगोई को राज्य अध्यक्ष बनाए जाने के दो दिन बाद हुई.

    जून से राहुल गांधी की संगठनात्मक गतिविधियों में और तेज़ी आ गई. 3 और 4 जून को वे क्रमशः मध्यप्रदेश और हरियाणा में थे, जहां उन्होंने पार्टी के सांसदों, विधायकों, राजनीतिक मामलों की समितियों, ज़िला और ब्लॉक अध्यक्षों से मुलाकात की.

    हरियाणा में चंडीगढ़ स्थित कांग्रेस कार्यालय में उनका दौरा गांधी परिवार के किसी भी सदस्य का पहला दौरा था.

    6 जून को उन्होंने बिहार के गया और राजगीर में पार्टी कार्यक्रमों में हिस्सा लिया. उसी दिन उन्होंने अखबारों में एक लेख भी लिखा — जो उन्होंने पहले कभी-कभार ही किया था — इस लेख में उन्होंने चुनाव आयोग की स्वतंत्रता (या उसकी कमी) पर सवाल उठाए और इससे देशभर में बहस छिड़ गई.

    19 जून को राहुल गांधी ने अपना 55वां जन्मदिन पार्टी के राष्ट्रीय मुख्यालय में मनाया, जहां उन्होंने नेताओं और कार्यकर्ताओं से व्यक्तिगत रूप से शुभकामनाएं स्वीकार कीं. पहले वे अक्सर जन्मदिन पर विदेश में होते थे, जिससे कार्यकर्ताओं को उनसे मिलने का मौका नहीं मिल पाता था और इस बात को लेकर उनकी आलोचना भी होती थी.

    21 जून को कांग्रेस ने गुजरात में अपने नए ज़िला अध्यक्षों की घोषणा की — यह उस पायलट प्रोजेक्ट का अंतिम चरण था, जिसे अब देशभर में लागू किया जा रहा है.

    वेणुगोपाल ने कहा कि नए ज़िला अध्यक्षों के प्रदर्शन की समीक्षा तीन से चार महीनों में की जाएगी, जो अच्छा काम नहीं करेंगे, उन्हें पद छोड़ना होगा.

    उन्होंने कहा, “सिर्फ ज़िला अध्यक्ष ही नहीं, बल्कि हर स्तर के पदाधिकारियों का स्पष्ट रूप से मूल्यांकन किया जाएगा. यह प्रक्रिया AICC (अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी) द्वारा की जाएगी. सभी को वह काम पूरा करना होगा, जिसके लिए उन्हें चुना गया है. जो भी व्यक्ति चुनाव लड़ना चाहता है, उसे कम से कम एक साल पहले पद छोड़ना होगा. सभी को वैचारिक प्रशिक्षण दिया जाएगा और मौजूदा राजनीतिक हालात की जानकारी भी दी जाएगी.”

    कांग्रेस की आदिवासी इकाई के नेताओं ने बताया कि पिछले एक महीने में राहुल गांधी के साथ हुई दो बैठकों में उन्होंने इसी तरह की बात साझा की.

    23 जून को राहुल गांधी ने ऑल इंडिया आदिवासी कांग्रेस के नेताओं से मुलाकात की थी. 14 जुलाई को उन्होंने एक और बैठक की, जिसमें उन्होंने पार्टी के भीतर मजबूत आदिवासी नेतृत्व तैयार करने का अपना विज़न साझा किया.

    इस महीने अब तक राहुल गांधी बिहार, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, असम और केरल का दौरा कर चुके हैं. इसके अलावा दिल्ली में उन्होंने झारखंड, बिहार और गुजरात इकाइयों के नेताओं से अलग-अलग मुलाकात की.

    कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी, जो राहुल के साथ काम करते हैं, उन्होंने बताया, “राहुल अब पार्टी के पुराने और नए नेताओं के बीच एक सेतु की भूमिका निभा रहे हैं.”

    उन्होंने शुक्रवार को तिरुवनंतपुरम में पूर्व रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी से भी मुलाकात की.

    हालांकि, कई नेता इस नए बदलाव को लेकर सतर्क आशावाद जताते हैं और कहते हैं कि इससे पार्टी को कितना फायदा होगा, ये देखना बाकी है.

    कांग्रेस की गुजरात इकाई के एक नेता ने कहा, “राहुल गांधी ज़मीनी स्तर तक, यानी ब्लॉक स्तर के कार्यकर्ताओं तक अपनी सोच और योजना साझा कर रहे हैं, लेकिन असली चिंता अमल की है. पिछले साल उन्होंने कहा था कि वे गुजरात कांग्रेस को बीजेपी के लोगों से मुक्त करेंगे, लेकिन हुआ ये कि उन्हीं लोगों ने कई ज़िलों में ज़िला अध्यक्ष बनाने की प्रक्रिया को प्रभावित किया.”

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